Karvachauth 2018: करवा चौथ पर कब दिखेगा चांद ।। भूलकर भी न करें यह काम ।। कथा और पूजन विधि..
Karvachauth 2018: करवा चौथ पर कब दिखेगा चांद ।। भूलकर भी न करें यह काम ।। कथा और पूजन विधि..
इकीसवीं सदी में बिखरते पारिवारिक रिश्ते, आहत होती भावनाएं और पति/पत्नी के मध्य घटते विश्वास को मजबूती प्रदान करनेवाला पर्व ‘गणेश चतुर्थी’ ‘करवा चौथ’ का व्रत 27 अक्तूबर को मनाया जाएगा। द्वापर युग से लेकर आज कलियुग के पांच हजार एक सौ उन्नीस वर्ष व्यतीत होने पर भी यह पर्व उतनी ही आस्था के साथ मनाया जाता है जैसा द्वापर युग में मनाया जाता था। दिल्ली में करवाचौथ पर चंद्रमा का उदय रात 07 बजकर 58 मिनट पर होगा। इस समय करवा चौथ पूजन, कथा पाठ किया जा सकता है।
मूलतः यह व्रत सुहाग की रक्षा और सौभाग्य के लिए किया जाता है। भारतीय महिलाए इस दिन संपूर्ण रूप से अपने पति के प्रति समर्पित होकर उनकी उत्तम आयु, स्वास्थ्य और उन्नति के लिए व्रत करती हैं। इस दिन सुहागिन महिलाओं द्वारा दिन भर निर्जला व्रत रखकर शायंकाल में, प्रदोष (गोधूली बेला) एवं निशीथ काल (मध्य रात्रि) के मध्य भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश, कुमार कार्तिकेय आदि देवताओं की षोडशोपचार विधि से पूजन करने के साथ-साथ सुहाग के वस्तुओं की भी पूजा की जाती है। चंद्रमा का पूजन, दर्शन और अर्घ्य देने के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है।
उपनिषदों के अनुसार चंद्रमा की प्रसन्नता का अर्थ है, स्वयं प्रजापिता ब्रह्माजी का प्रसन्न होना। इस दिन गणेश की पूजा परिवार की बुद्धि निर्मल करती है और चंद्रमा आपसी प्रेम और सौहार्द को बढ़ाने की शक्ति प्रदान करते हैं। मां पार्वती उन सभी महिलाओं को सदा सुहागन होने का वरदान देती हैं, जो पूर्णतः समर्पण और श्रद्धा-विश्वास के साथ यह व्रत करती हैं।
दिन घर में शांति और सौहार्द का वातावरण बनाए रखना चाहिए। पारिवारिक कलह और द्वेष से बचें। पति-पत्नी को आपसी मनमुटाव से खासतौर पर बचना चाहिए। मान्यता है कि यदि पति-पत्नी इस तिथि में झगड़ते हैं तो पूरे साल ऐसी परिस्थितियां बनती रहती हैं जिनसे आपस में मनमुटाव होता रहता है।
इस दिन सोने, चांदी अथवा मिट्टी के करवे से पूजा की जाती है। करवा चौथ पर परिवार और आस-पड़ोस की महिलाएं एक साथ पूजा करती हैं। इस दौरान वे एक-दूसरे के साथ करवे का आदान-प्रदान करते हुए मंगल गीत गाती हैं और मां गौरी और गणपति से सौभाग्य देने की कामना करती हैं। पूजा के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। फिर महिलाएं परिवार के बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लेती हैं।
करवा चौथ व्रत की अनेकों कथाएं हैं किंतु सबसे प्रमाणिक कथा स्वयं भगवान कृष्ण द्वारा द्वापर युग में इस व्रत के महत्व को लेकर कही गई है। दरअसल, एक बार अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर गए थे। कई दिनों तक उनकी कोई खबर न मिलने पर चिंतित पत्नी द्रौपदी ने कृष्ण भगवान का ध्यान कर अपनी चिंता व्यक्त की। तब श्रीकृष्ण ने कहा यह कथा द्रौपदी को सुनाई और करवा चौथ के व्रत का महत्व बताया।
श्रीकृष्ण कहते हैं, द्रौपदी! पति की सुरक्षा से जुड़ा इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने महादेव से किया था। तब महादेव ने मां पार्वती को ‘करवा चौथ’ का व्रत बतलाया था। इस व्रत से पत्नी अपने पति की रक्षा कर सकती हैं। सुनो द्रौपदी, प्राचीन काल में एक ब्राह्मण के चार बेटे और एक बेटी थी। चारो भाई अपनी बहन को बहुत प्रेम करते थे और उसका छोटा-सा कष्ट भी उन्हें बहुत बड़ा लगता था। ब्राह्मण की बेटी का विवाह होने पर एक बार वह जब मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।
भाइयों से बहन को भूखा-प्यासा देखकर रहा ना गया और उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल के पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी छितरा दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण कर लो। बहन ने ऐसा ही किया। भोजन करते ही उसे पति की मृत्यु का समाचार मिला। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी। उस समय वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं! उनसे उसका दुःख न देखा गया!
वह विलाप करती हुई ब्राह्मण कन्या के पास गई। तब ब्राह्मण कन्या ने अपने इस दुःख कर्म पूछा, तब इंद्राणी ने कहा ! तुमने बिना चंद्रदर्शन किए ही करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसीलिए यह कष्ट मिला। अब तुम वर्षभर में आनेवाली चतुर्थी तिथि का व्रत नियमपूर्वक करने का संकल्प लो तो तुम्हारे पति जीवित हो जाएंगे! ब्रहामण कन्या ने रानी इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ के व्रत का संकल्प किया। इस पर उसका पति जीवित हो उठा और वह पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं।
करवाचौथ व्रत का महत्व
धार्मिक ग्रंथ और करवा चौथ
करवा चौथ पर भूलकर भी न करें यह काम
करवा चौथ की पूजा
इस दिन सोने, चांदी अथवा मिट्टी के करवे से पूजा की जाती है। करवा चौथ पर परिवार और आस-पड़ोस की महिलाएं एक साथ पूजा करती हैं। इस दौरान वे एक-दूसरे के साथ करवे का आदान-प्रदान करते हुए मंगल गीत गाती हैं और मां गौरी और गणपति से सौभाग्य देने की कामना करती हैं। पूजा के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। फिर महिलाएं परिवार के बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लेती हैं।
करवा चौथ व्रत की कथा
करवा चौथ व्रत की अनेकों कथाएं हैं किंतु सबसे प्रमाणिक कथा स्वयं भगवान कृष्ण द्वारा द्वापर युग में इस व्रत के महत्व को लेकर कही गई है। दरअसल, एक बार अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर गए थे। कई दिनों तक उनकी कोई खबर न मिलने पर चिंतित पत्नी द्रौपदी ने कृष्ण भगवान का ध्यान कर अपनी चिंता व्यक्त की। तब श्रीकृष्ण ने कहा यह कथा द्रौपदी को सुनाई और करवा चौथ के व्रत का महत्व बताया।
श्रीकृष्ण कहते हैं, द्रौपदी! पति की सुरक्षा से जुड़ा इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने महादेव से किया था। तब महादेव ने मां पार्वती को ‘करवा चौथ’ का व्रत बतलाया था। इस व्रत से पत्नी अपने पति की रक्षा कर सकती हैं। सुनो द्रौपदी, प्राचीन काल में एक ब्राह्मण के चार बेटे और एक बेटी थी। चारो भाई अपनी बहन को बहुत प्रेम करते थे और उसका छोटा-सा कष्ट भी उन्हें बहुत बड़ा लगता था। ब्राह्मण की बेटी का विवाह होने पर एक बार वह जब मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।
भाइयों से बहन को भूखा-प्यासा देखकर रहा ना गया और उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल के पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी छितरा दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण कर लो। बहन ने ऐसा ही किया। भोजन करते ही उसे पति की मृत्यु का समाचार मिला। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी। उस समय वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं! उनसे उसका दुःख न देखा गया!
वह विलाप करती हुई ब्राह्मण कन्या के पास गई। तब ब्राह्मण कन्या ने अपने इस दुःख कर्म पूछा, तब इंद्राणी ने कहा ! तुमने बिना चंद्रदर्शन किए ही करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसीलिए यह कष्ट मिला। अब तुम वर्षभर में आनेवाली चतुर्थी तिथि का व्रत नियमपूर्वक करने का संकल्प लो तो तुम्हारे पति जीवित हो जाएंगे! ब्रहामण कन्या ने रानी इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ के व्रत का संकल्प किया। इस पर उसका पति जीवित हो उठा और वह पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं।
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